बोरिस स्पैस्की: शतरंज चैंपियन और शीत युद्ध का एक मोहरा



बोरिस स्पैस्की: शतरंज चैंपियन और शीत युद्ध के राजनीतिक मोहरे

दुनिया के महानतम शतरंज खिलाड़ियों में से एक बोरिस स्पैस्की का 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। शतरंज प्रेमियों के लिए उनका नाम हमेशा 1972 की ऐतिहासिक विश्व शतरंज चैंपियनशिप से जुड़ा रहेगा, जिसमें उनका मुकाबला अमेरिकी ग्रैंडमास्टर बॉबी फिशर से हुआ था। इस मैच ने न केवल खेल जगत, बल्कि शीत युद्ध की राजनीति को भी नया मोड़ दिया था।

फिशर और स्पैस्की: एक ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता

स्पैस्की और फिशर के बीच खेली गई 1972 की चैंपियनशिप को शतरंज का महामुकाबला कहा जाता है। इस मैच में फिशर ने छठे गेम में शानदार जीत दर्ज की थी, जिसे खुद स्पैस्की ने स्टैंडिंग ओवेशन देकर सराहा था। हालांकि, इस हार के बाद स्पैस्की ने राहत भी महसूस की। उन्होंने इसे “भारी जिम्मेदारी से छुटकारा” बताया, क्योंकि सोवियत संघ के लिए विश्व शतरंज चैंपियन होना एक बहुत बड़ा दायित्व था।

फिशर ने भी स्पैस्की को कभी खलनायक के रूप में नहीं देखा। दोनों खिलाड़ी समझते थे कि वे राजनीतिक प्रचार के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे। तीन दशक बाद, जब उन्होंने युद्धग्रस्त यूगोस्लाविया में एक मैच खेला, तो स्पैस्की ने अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश को एक पत्र लिखा:

“बॉबी और मैंने एक ही अपराध किया है। मुझे भी गिरफ्तार करो और फिशर के साथ एक ही सेल में डाल दो। और हमें एक शतरंज बोर्ड दे देना।”

स्पैस्की की उपलब्धियाँ और सोवियत दिग्गजों को मात

स्पैस्की की सबसे बड़ी उपलब्धियों में सोवियत संघ के कुछ महानतम शतरंज खिलाड़ियों को हराना शामिल है। उन्होंने वसीली स्मिस्लोव, मिखाइल ताल, तिगरान पेट्रोसियन, अनातोली कार्पोव और गैरी कास्पारोव जैसे दिग्गजों को मात दी थी।

उन्होंने एक बार लेवोन एरोनियन से कहा था:
“विश्व चैंपियन बनने की कोशिश मत करो, हममें से ज़्यादातर लोग दुर्घटनावश चैंपियन बन गए हैं।”

लेकिन हॉलीवुड ने इस रूसी खिलाड़ी को शीत युद्ध के प्रतीक के रूप में चित्रित किया। फिल्मों में अमेरिकी खिलाड़ी फिशर को नायक की तरह दिखाया गया, जबकि स्पैस्की को सोवियत अधिनायकवाद का प्रतिनिधित्व करने वाला खिलाड़ी बना दिया गया।

स्पैस्की की खेल शैली: अप्रत्याशितता और मनोवैज्ञानिक रणनीति

स्पैस्की का खेल अन्य ग्रैंडमास्टर्स से अलग था। उन्होंने ओपनिंग थ्योरी की तुलना में मिडल गेम पर अधिक ध्यान दिया। उनका खेल मनोविज्ञान और अप्रत्याशित चालों से भरा था। बॉबी फिशर ने उनके बारे में कहा था:

“स्पैस्की एक मोहरा खो सकता था और आपको कभी यकीन नहीं होता कि यह गलती थी या एक गहरी रणनीतिक बलिदान।”

1972 का मुकाबला: स्पैस्की बनाम फिशर

1972 के विश्व शतरंज चैंपियनशिप मैच में कई रणनीतिक गलतियाँ हुईं। स्पैस्की ने कई एक-चाल के शानदार अवसरों को नजरअंदाज कर दिया, जबकि फिशर ने उन पर ध्यान दिया और उनका लाभ उठाया।

अगर टेनिस की दुनिया से तुलना करें, तो स्पैस्की “ब्योर्न बोर्ग” थे और फिशर “जॉन मैकेनरो”। फर्क सिर्फ इतना था कि इस मुकाबले में “मैड मैक” (फिशर) ने जीत हासिल की।

ravi kumar
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रवि कुमार एक अनुभवी और समर्पित संवाददाता हैं, जो अपने लेखन और रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते हैं। उनकी पत्रकारिता में गहरी समझ और सटीकता का मिश्रण देखने को मिलता है, जो पाठकों को हर मामले की सच्चाई से अवगत कराता है। रवि ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रभावी ढंग से रिपोर्टिंग की है, जिससे उनकी पहचान एक विश्वसनीय पत्रकार के रूप में बनी है।

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