सरकार ने RIL और भागीदारों को $2.8 बिलियन का डिमांड नोटिस भेजा | प्राकृतिक गैस माइग्रेशन विवाद

सरकार ने एक दशक पुराने प्राकृतिक गैस माइग्रेशन विवाद में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और उसके भागीदारों को 2.81 अरब डॉलर का डिमांड नोटिस जारी किया है। यह निर्णय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा सरकार के पक्ष में दिए गए आदेश के बाद आया है।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह विवाद 2013 में तब शुरू हुआ जब ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) ने आरोप लगाया कि आरआईएल ने बंगाल की खाड़ी में केजी-डी6 ब्लॉक से गैस निकालकर उसे बेचा, जबकि वह गैस वास्तव में ओएनजीसी के ब्लॉक KG-DWN-98/2 से आई थी। ओएनजीसी ने सरकार से इस नुकसान की भरपाई की मांग की थी।
2014 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को एक स्वतंत्र अध्ययन करने का निर्देश दिया। इस अध्ययन के लिए वैश्विक सलाहकार डीगोलियर और मैकनॉटन (डीएंडएम) को नियुक्त किया गया, जिन्होंने 2015 में अपनी रिपोर्ट में बताया कि दोनों ब्लॉकों के जलाशयों के बीच कनेक्टिविटी है। इसके बाद, सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह की अध्यक्षता में एक पैनल गठित किया, जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मुआवजे की हकदार सरकार है, न कि ओएनजीसी।
कानूनी प्रक्रिया
2016 में, सरकार ने आरआईएल और उसके भागीदारों पर 1.55 अरब डॉलर की मांग रखी। इसके जवाब में, आरआईएल ने मामला अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण में ले जाया, जिसने 2018 में आरआईएल के पक्ष में फैसला दिया। इसके बावजूद, 2023 में सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में मध्यस्थता के फैसले को चुनौती दी। पहले अदालत के एकल न्यायाधीश ने आरआईएल के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन अपील पर, खंडपीठ ने सरकार के पक्ष में निर्णय दिया।
वर्तमान स्थिति
दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के बाद, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने आरआईएल, बीपी एक्सप्लोरेशन (अल्फा) लिमिटेड, और निको लिमिटेड पर 2.81 अरब डॉलर की मांग की है। आरआईएल ने स्टॉक एक्सचेंज को सूचित किया कि उसे 3 मार्च 2025 को सुबह 11:30 बजे यह नोटिस प्राप्त हुआ।
आरआईएल का कहना है कि यह डिमांड नोटिस और अदालत का निर्णय “अस्थायी” है और कंपनी इसे चुनौती देने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है। कंपनी को इस विवाद के कारण किसी भी वित्तीय दायित्व की उम्मीद नहीं है।
आरआईएल की हिस्सेदारी
पहले आरआईएल की केजी-डी6 ब्लॉक में 60% हिस्सेदारी थी, लेकिन निको के इस ब्लॉक से हटने के बाद आरआईएल की हिस्सेदारी बढ़कर 66.6% हो गई, जबकि बीपी की हिस्सेदारी 33.3% हो गई।