-श्रीमद्भागवत कथा में भक्तों ने किए भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप के दर्शन
फिरोजाबाद। नगर के रामलीला मैदान में चल रही श्रीमद्भागवत कथा, ज्ञान यज्ञ एवं विराट संत सम्मेलन में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म एवं नन्दोत्सव की कथा का वर्णन सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए। पांडाल में चहुंओर नंद के घर आंनद भए जय कन्हैया लाल की के जयकारों की गूंज होने लगी। प्रत्येक भक्त भगवान के बालरूप के दर्शनों के लिए ललायित था। शाम को आरती के बाद कथा को विराम दिया गया।
सोहम् मंडल के तत्वाधान में रामलीला मैदान में हो रही श्रीमद्भागवत कथा में कथाव्यास रामागोपाल शास्त्री ने भगवान के अवतार के विषय में वर्णन करते हुए कहा कि जब जब धर्म का ह्रास होता है और अधर्म बढ़ने लगता है तथा जब दुष्टों का अत्याचार बढ़ने लगता है तब-तब मैं भक्तों को सुख प्रदान करने के लिए युग-युग में मनुष्य रूप में अवतार लेकर आता हूं। रामजन्म की पावन कथा का भक्तों को रसास्वादन कराया।
श्रीकृष्ण के जन्म की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि पालन हार का जन्म भादो शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मथुरा की जेल में हुआ था। माता देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया था। उस समय जेल के प्रहरेदार सो गए थे। वासदेव लाला को सिर पर रखकर यमुना पार करते हुए नंदगांव पहुंचे। नंद जी के यहां माता यशोदा के पास लाला को लिटा दिया था। वहां से कन्या लेकर वापस आ गए थे। भगवान श्रीकृष्ण की झांकी निकाली गई। भक्तजन भगवान के बालरूप के दर्शन के लिए उमड़ पडे।
कथा पांडाल में नंद के घर आंनद भए जय कन्हैया लाल के जयकारे लगने लगे। नंदोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया। जिसने भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कथा यजमान मनोज यादव और रूबल यादव ने श्रीकृष्ण के बालरूप का पूजन किया। यज्ञपति उमेश अग्रवाल पप्पू और मधु अग्रवाल ने हवन किया। अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु भक्तजन सुबह से शाम तक यज्ञशाला की परिक्रमा करते रहे।
मनुष्य को कमाई का दशम भाग अवश्य दान करना चाहिए-स्वामी शुकदेवानंद
फिरोजाबाद। अखिल भारतीय सोहम महामंडल के तत्त्वावधान में चल रहे विराट संत सम्मेलन में सोहं पीठाधीश्वर स्वामी सत्यानन्द महाराज ने कहा कि श्रेय व प्रेय दोनों हर व्यक्ति के जीवन में आते हैं। धीर पुरुष श्रेय अर्थात कल्याण मार्ग का अनुशरण करता है। जबकि अविवेकी अपने योगक्षेम अर्थात पेट भरने के लिए प्रेय मार्ग अर्थात प्रिय लगने वाले मार्ग का अनुशरण करता है।
स्वामी शुकदेवानंद ने कहा कि हमें अपनी कमाई का दशम भाग दान के लिए अवश्य ही निकालना चाहिए। दिया हुआ दान ही कई गुणा बढ़ाकर वापस मिलता है। स्वामी रामशरणदास ने हरिश्चंद्र की दानशीलता पर प्रकाश डाला। स्वामी परमानंद ने कहा कि दानशीलता से व्यक्तित्व महान बनता है।
स्वामी प्रणवानंद ने कहा कि परहित सबसे बड़ा धर्म है, स्वामी निगमानन्द ने सात्विक दान के विषय में बताया, स्वामी नारायणानंद, स्वामी भगवतानंद, स्वामी हरिशरणानंद, स्वामी सच्चिदानंद, स्वामी सदानंद ने भी अपने प्रवचनों से श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन किया। सत्संग में चंद्रप्रकाश शर्मा, द्विजेंद्र मोहन शर्मा, उमाकांत पचैरी आदि ने संतों का सम्मान किया।