राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2025: रमन प्रभाव और सी.वी. रमन की उपलब्धियाँ

भारत में हर साल 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है, जो 1928 में सर सी.वी. रमन द्वारा की गई रमन प्रभाव की खोज के सम्मान में समर्पित है। इस वर्ष की थीम, ‘विकसित भारत के लिए विज्ञान और नवाचार में वैश्विक नेतृत्व के लिए भारतीय युवाओं को सशक्त बनाना’, भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करती है।
1986 में, राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद (NCSTC) ने सिफारिश की कि 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस घोषित किया जाए, जिसे भारत सरकार ने स्वीकार किया। 1987 से, यह दिन पूरे देश में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने और रमन प्रभाव की खोज का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है।
सी.वी. रमन कौन थे?
चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तिरुचिरापल्ली में हुआ था। उनके पिता गणित और भौतिकी के व्याख्याता थे, जिन्होंने उन्हें प्रारंभ से ही एक शैक्षणिक माहौल प्रदान किया। 1902 में, उन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और 1904 में भौतिकी में प्रथम स्थान एवं स्वर्ण पदक प्राप्त करते हुए बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद 1907 में, उन्होंने एम.ए. की डिग्री सर्वोच्च सम्मान के साथ पूरी की।
रमन का प्रकाशिकी और ध्वनिकी में प्रारंभिक शोध उनके छात्र जीवन से ही शुरू हो गया था। हालांकि, उस समय वैज्ञानिक क्षेत्र में करियर बनाना एक आसान विकल्प नहीं था, इसलिए 1907 में, वे भारतीय वित्त विभाग में शामिल हो गए। इसके बावजूद, उन्होंने अपने वैज्ञानिक शोध कार्य को जारी रखा और 1919 में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस के मानद सचिव बने। 1917 में, उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के नव-संपन्न पालित चेयर को स्वीकार किया।
कलकत्ता में 15 साल बिताने के बाद, वे भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर चले गए, जहाँ उन्होंने 1933 से 1948 तक प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। बाद में, 1948 में, उन्होंने बैंगलोर में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की और इसके निदेशक बने। इस संस्थान को उन्होंने खुद वित्तपोषित भी किया।
रमन ने 1926 में इंडियन जर्नल ऑफ़ फ़िज़िक्स की स्थापना की और इसके संपादक बने। उन्होंने भारतीय विज्ञान अकादमी की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसके अध्यक्ष बने।
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ‘रमन प्रभाव’ की खोज थी, जिसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, 1954 में उन्हें भारत रत्न से नवाज़ा गया।
21 नवंबर 1970 को, 82 वर्ष की आयु में बैंगलोर में उनका निधन हो गया।