फिरोजाबाद। महावीर जिनालय छदामीलाल जैन मंदिर में चातुर्मास कर रहे आचार्य वसुनंदी महाराज ससंघ के सानिध्य में धर्म की वर्षा लगातार हो रही है।
मंगलवार को आचार्य श्री ने विशेष संबोधन में भारतीय संस्कृति में जीवंत कौन के बारे में बताते हुए कहा कि तृप्ति, शुद्धि और संतुष्टि भारतीय संस्कृति के मुख्य अंग है। व्यक्ति के वचनों में, व्यक्ति के भवन में तथा व्यक्ति के भोजन ने शुद्धि और पवित्रता होनी चाहिए। यदि शरीर पर गंदगी, धूल, मिट्टी आदि लगी हो तो मन भी संतुष्ट नहीं रहता।
यदि किसी के वचनों में शुद्धि नही है, तो उसे कोई व्यक्ति पसंद नही करता। इसलिए मन में शुद्धि एवं पवित्रता होनी चाहिए कुविचार, खोटे भाव एवं दूषित मन से किसी का कल्याण नही होता। मन में किसी के प्रति छल कपट नही होना चाहिए। मन के गंदे भावो को निकाल कर फेंक देना ही भारतीय संस्कृति का अंग है। भारतीय संस्कृति में जीवंत वही है जिसे आनंद आ रहा हो, हिंसा रूपी व्यक्ति कभी आनंद नही ले पता है।
आचार्य श्री ने आगे कहा की भारतीय संस्कृति के 4 आयाम होते है, शांति, तुष्टि, पवित्रता एवं आनंद। जिसके पास ये चारों चीजे होती है उसकी आत्मा भारतीय संस्कृति में जीवंत (जीवित) कहलाती है। प्रवचन में सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ विनोद जैन मिलेनियम, अशोक जैन तुलसी बिहार, अरुण जैन पीली कोठी, संजय जैन होल्टू, संभव प्रकाश जैन, जितेंद्र जैन जीतू, निमिष जैन, शैलेंद्र जैन, राज जैन के अलावा वर्षायोग समिति के मीडिया प्रभारी अजय जैन बजाज एवं राज जैन रहे।