फिरोजाबाद: अर्धनारीश्वर के रूप में शिव-पार्वती दोनो एक ही है-विश्वेश्वरी देवी
फिरोजाबाद। रामलीला मैदान में चल रही रामकथा के तीसरे दिन शिव-पार्वती विवाह की कथा का वर्णन किया। साथ ही कहा कि प्रत्येक कल्प में भगवान का श्रीरामावतार होता है।
कथा व्यास डाॅ विश्वेश्वरी देवी ने शिव पार्वती प्रसंग के माघ्यम से रामकथा का प्रारंभ कैलाश की पावन भूमि से किया। उन्होंने कहा कि पार्वती की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने विवाह का वचन दिया। शिव पार्वती विवाह मंें भूत प्रेतों को भी शामिल किया गया, जो शिव की समता का दर्शन कराते है। शिव पार्वती साक्षात शक्ति और शक्तिमान है। लीला मात्र के लिए वह दोनो अलग-अलग रूपों में नजर आते हैं, किंतु अर्धनारीश्वर रूप में दोनो एक ही है। शक्ति और शक्तिमान के पाणिग्रहण से कुमार कार्तिक का जन्म होता है। जो तारकासुर का अंत करते है, तारकासुर समाज के अनाचार एवं अर्धम का प्रतीक है और कार्तिक सद्गुणों का प्रतीक है। जब सद्गुण बलवति होते है, तो बड़े से बड़े अवगुण को भी नष्ट कर देते हे।
साध्वी ने कहा कि प्रत्येक कल्प में भगवान का श्रीरामावतार होता है। पांच कल्पों की कथा मानस में है। अर्धम रूप रावण के अंत के लिए एवं सतों, भक्तों व प्रेमियों को आनंद देने के लिए भगवान अवतार लेकर आते है। हमारा मन भी अयोध्या है, जब मन में प्रेम और भक्तों की धारा प्रवाहित होने लगती है, तो भगवान निराकार से साकार हो जाते है। त्रेता युग में चैत्र शुल्क पक्ष नवमी के दिन भगवान का अवतार महाराज दशरथ एवं माता कौशल्या के राज भवन में हुआ। भगवान के जन्मोत्सव पर समस्त श्रद्वालुओं ने एक दूसरे को बधाई एवं आनंद के साथ रामलला के दर्शन करते हुए नृत्य किया। इस अवसर पर श्रीराम की बाल रूप की संजीव झांकी सजाई गई। बाल रूप की झांकी के दर्शन कर भक्तों ने पुण्य लाभ लिया।