दुपहिया’ वेब सीरीज़ रिव्यू: गजराज राव और रेणुका शहाणे की स्वच्छ, पारिवारिक मनोरंजन वाली कहानी

दुपहिया समीक्षा: ‘ना गाली, ना दुनाली’; गजराज राव और रेणुका शहाणे का पारिवारिक मनोरंजन
धड़कपुर के काल्पनिक गांव में एक चोरी हुई मोटरसाइकिल- ‘दुपहिया’- इस नई कॉमेडी का केंद्र बिंदु है। यह शो बिहारी-मुंबई लहजे, विचित्र किरदारों और जीवन के व्यापक सबक का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करता है। इसने ‘पंचायत’ जैसी लोकप्रिय वेब सीरीज़ की यादें ताज़ा कर दी हैं, जहां गांव की सादगी और हास्य को प्रभावशाली ढंग से दिखाया गया था। हालांकि, इस बार सेटिंग उत्तर प्रदेश से बदलकर बिहार कर दी गई है, लेकिन शो का हल्का-फुल्का और मनोरंजक अंदाज बरकरार है।
कहानी और मुख्य किरदार
‘दुपहिया’ एक मोटरसाइकिल की चोरी और उसे खोजने की कोशिश के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अंततः एक शादी से जुड़ जाती है। स्कूल-शिक्षक बनवारी झा (गजराज राव) अपनी बेटी रोशनी (शिवानी रघुवंशी) के लिए एक उपयुक्त वर खोजने में लगे हैं। लेकिन अचानक एक घटना उनके प्रयासों को नया मोड़ दे देती है—एक ‘दुपहिया’ चोरी हो जाती है। रोशनी के भावी दूल्हे कुबेर (अविनाश द्विवेदी) का इस गाड़ी से खास लगाव होता है, जिससे यह खोज और भी महत्वपूर्ण बन जाती है।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच महिला पंचायत नेता पुष्पलता यादव (रेणुका शहाणे) और पुलिस अधिकारी मिथिलेश कुशवाहा (यशपाल शर्मा) जैसे किरदार भी जुड़ते हैं, जो कहानी को दिलचस्प बनाते हैं। बनवारी झा का बेटा भुगोल (स्पर्श श्रीवास्तव) और उसका दोस्त अमावस (भुवन अरोड़ा) भी इस खोज में शामिल होते हैं, जिससे हास्य और रोमांच का नया तड़का लगता है।
हास्य, व्यंग्य और सामाजिक मुद्दे
शो में बिहार के ग्रामीण जीवन की झलक देखने को मिलती है। स्थानीय अखबार के संपादक (बृजेंद्र काला) की संवाद अदायगी शानदार है, जहां वे मीडिया की मौजूदा स्थिति पर व्यंग्य कसते हैं—”पुष्टि करना लोगों का काम है, हमारा काम है छपना।” इसी तरह, सामाजिक मुद्दों जैसे रंगभेद, दहेज प्रथा और महिलाओं की सत्ता में भागीदारी को भी हल्के-फुल्के अंदाज में उठाया गया है।
हालांकि, शो की खासियत यह है कि यह इन विषयों को ज़रूरत से ज़्यादा गंभीर न बनाकर मनोरंजन के साथ प्रस्तुत करता है। चाहे ‘लौंडा नाच’ हो या ‘बिहार का बेल्जियम’ जैसे संवाद, हर दृश्य में हास्य और संस्कृति का अनोखा संगम देखने को मिलता है।