नेटफ्लिक्स पर ‘एडोलसेंस’ क्यों बन गया नंबर 1? सुधीर मिश्रा ने किया आश्चर्यजनक खुलासा

सुधीर मिश्रा की ‘एडोलसेंस’ पर विवादास्पद राय: क्या भारतीय दर्शकों का स्वाद बदल रहा है?
प्रसिद्ध फिल्म निर्माता सुधीर मिश्रा, जो धारावी (1992), हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी (2003), और चमेली (2004) जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं, ने हाल ही में नेटफ्लिक्स पर ट्रेंड कर रहे शो ‘एडोलसेंस’ के बारे में अपनी हैरानी भरी प्रतिक्रिया दी है। उनकी सीधी आलोचना ने सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना दिया है।
🎬 सुधीर मिश्रा की खुली आलोचना
सुधीर मिश्रा ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट किया,
“नेटफ्लिक्स इंडिया पर ‘एडोलसेंस’ नंबर 1 शो कैसे है? सभी पारंपरिक कहानी कहने के नियम इसके खिलाफ हैं। भारतीय दर्शकों को धीमी गति वाले शो पसंद नहीं करने चाहिए। यह शो हर स्क्रिप्ट लेखन के बुनियादी नियमों का उल्लंघन करता है। यह नीचे गिरता है, ऊपर नहीं उठता। यह वर्षों में सबसे बड़ी हैरानी है!”
सुधीर ने यह भी बताया कि उन्हें यह शो देखने की प्रेरणा हंसल मेहता और शेखर कपूर की शानदार समीक्षाओं के कारण मिली।
🤔 दर्शकों की प्रतिक्रिया: क्या दर्शक सुधीर से सहमत हैं?
एक यूज़र ने लिखा,
“यह शो दुनिया भर में हिट हो गया और पश्चिमी आलोचकों से शानदार समीक्षाएं मिलीं। शायद अगर हमें यह पूर्व-धारणा नहीं होती तो इसे देखना मुश्किल होता।”
इस पर सुधीर ने जवाब दिया,
“नहीं, मैंने इसे इसलिए देखा क्योंकि @mehtahansal और @shekharkapur इसके बारे में बहुत उत्साहित थे। वास्तव में, यह उन दुर्लभ शो में से एक है जिसे नेटफ्लिक्स पर एक साथ पसंद किया गया। लेकिन मुझे Better Call Saul ज्यादा पसंद है।”
🌍 ‘एडोलसेंस’ क्या है?
‘एडोलसेंस’ एक चार-एपिसोड वाली सीमित सीरीज़ है, जिसमें स्टीफन ग्राहम और नवागंतुक ओवेन कूपर मुख्य भूमिका में हैं। यह शो 13 मार्च को नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुआ और जल्दी ही दुनिया भर में नंबर 1 पर पहुंच गया।
कहानी:
यह सीरीज़ 13 वर्षीय जेमी मिलर (ओवेन कूपर) की कहानी है, जिसे उसके स्कूल में एक लड़की की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है। शो किशोरावस्था, सोशल मीडिया के प्रभाव, और आकस्मिक स्त्री-द्वेष जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालता है।
विशेषताएँ:
सभी दृश्य एक ही बार में शूट किए गए हैं, जो तकनीकी रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण और सराहनीय है।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने इसे यूके के स्कूलों में मुफ्त में स्ट्रीम करने की पहल का समर्थन किया है।
🔍 सुधीर मिश्रा का नजरिया: क्या भारतीय दर्शकों का स्वाद बदल रहा है?
सुधीर की आलोचना से यह सवाल उठता है:
क्या भारतीय दर्शक अब पश्चिमी स्टोरीटेलिंग को अधिक पसंद कर रहे हैं?
क्या धीमी गति और पारंपरिक कहानी कहने के तरीके अब पुरानी बातें बन गई हैं?
शायद अब समय आ गया है कि हम अपने कंटेंट के मानकों पर पुनर्विचार करें। क्या हमें भी ऐसी नई शैलियों को अपनाने के लिए तैयार होना चाहिए?

Gaurav Jha
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