फिरोजाबाद। जेस्टेशनल डायबिटीज यानि गर्भकालीन मधुमेह रक्त शर्करा से जुड़ा एक विकार है जो महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान शरीर के अंगों के साथ बच्चे को भी प्रभावित कर सकता है।
जिला महिला अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. प्रेरणा जैन का कहना है कि ऐसा उस समय होता है जब गर्भवती के शरीर में इंसुलिन बनना कम हो जाता है। उन्होंने बताया कि इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे दवा का ज्यादा सेवन करना, कम सक्रिय होना, चिंता करना, मीठा ज्यादा खाना, एक स्थान पर ज्यादा देर तक बैठे रहना आदि। हालांकि सावधानी और खानपान में बदलाव तथा उपचार से गर्भकालीन मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि गर्भकालीन मधुमेह को नजर अंदाज किया गया तो गर्भवती के पेट में पल रहे शिशु की जान को खतरा हो सकता है। यदि मां के खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ता है तो वह गर्भनाल से गुजर कर शिशु के रक्त में पहुंच जाता है और शिशु का ब्लड शुगर बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में गर्भपात का जोखिम, शिशु में विकृति, शिशु औसत से ज्यादा वजन का होने से ऑपरेशन की संभावना बढ़ जाती है, तथा आखरी तीन माह में गर्भस्थ शिशु की मृत्यु तक होने का खतरा रहता है। मधुमेह के लक्षण कई बार स्पष्ट पता नहीं चलते हैं, ऐसी स्थिति में ब्लड टेस्ट से ही इसका पता लगाया जाता है।